Wednesday, June 22, 2016

317. खिड़की जो खोली

खिड़की जो खोली
तो रैना की झोली -
में तारों की टोली दिखे आसमाँ पे

यहाँ क्यों खडें हम
चलो अब उड़ें हम
अंबर चढ़ें, हम भी जाए वहाँ पे

बादल की नैय्या पे
बैठे चाँद भैया के
बाजू  में बैठी है Ana

कहती है सितारें
अकेले है बेचारे
चल, साथ अब तू भी आना

यहाँ क्यों खडें हम
चलो अब उड़ें हम
अंबर चढ़ें, हम भी जाए वहाँ पे

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सारी रात अंबर पे भटकेगी नैय्या
किसी परबत किनारे फिर अटकेगी नैय्या

गाने गुनगुनाएँगे चीखेंगे चिल्लाएँगे
और ज़ोरों से ताली बजाएँगे
नींद बिगड़ेगी तो जंगल मे बैठे सारे उल्लू
गुटुर गुटुर गाली सुनाएँगे

वहाँ से फिर दौड़ें
अपनी नैय्या को मोड़ें
अपने निशाँ छोड़ें ठंडी हवा पे

यहाँ क्यों खडें हम
चलो अब उड़ें हम
अंबर चढ़ें, हम भी जाए वहाँ पे
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चाँद भैया से पूछेंगे सवाल अपने
कहाँ से लाते हैं वो रातों को सपने
कभी पीपल उनकी पकड़े कलैया
तारों की बड़ी उलझी भूल भुलैया

दो चार तारें चुराके रख ले निशानी
सुबह तकिया के नीचे छुपा दे कहानी

यहाँ क्यूँ खड़े हम
चलो, अब उड़े हम
अंबार चढ़े, हम भी जाए वहाँ पे

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Feb 2007
Can't remember
a. What drove me to this?
b. Who is Ana?
:O


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