Friday, October 14, 2016

344. ख़ुदा

खूबरूह है ख़ुदा जो रूबरू मुझे मिला
ज़िक्र इबादतों में जैसा हूबहू मुझे मिला

दर-बदर क्यों घर यूँ उसके रखे है तूने राह पर
यहीं नहीं, है हर कहीं वो कूबकू मुझे मिला

मग़रूर सा हाफ़िज़ की, तेरे, करने चला हिफ़ाज़तें
ताज्जुब नहीं यूँ बेख़ुदा बेफ़ैज़ तू मुझे मिला

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