Friday, April 22, 2016

308. बहरा

मैं अपने पहलू में
खामोशी
लिए
कितने शहरों से गुज़रा हूँ
कितने पहरों से गुज़रा हूँ

मेरी हम-उम्र हम-सफ़र है
खामोशी
मेरी जुड़वा बहन है ये

जबसे मैं था
मेरे साथ ये थी

पर
जबसे मैं सुनने लगा हूँ
आवाज़ें जैसे उलझ रही हैं
कदमों से मेरे

तन्हा हो गया हूँ मैं
इस शहर में

इस शोर के मेले में
बिछड़ गयी है
जुड़वा मेरी

अब उसके बिना
मुझे ये गुफ्तगू के नक़्शे
अजीब लगते हैं
और ये बातूनी चेहरे
अजनबी लगते हैं

अगर किसी को
खामोशो
मिले
तो
प्लीज़
ज़रा मुझे बता देंगे?

--
a not too terse way of saying the same thing.

was
anchored in silence

is
lost in the noise

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