Saturday, February 18, 2017

365. Freefalling

living in a place
with too many skies
and just no earth

i flew
till i could
no more

and
now
i am freefalling

and will
forever
now

---
( You scientist folks, don't get technical and ask me how am I freefalling. With no earth, there should be no gravity, hence I should just be floating. F*** you, it's a metaphor)

Thursday, February 02, 2017

364. Imagined


i have a habit
of missing that person sorely
someone I did not know at all

i think
often
if they were here
what would my world be like?
would I be me?
or would I be a different intriguing heart-breaking story?

i have a habit
of missing that person sorely
someone I have never met

i think
often
if they were here
what would I talk to myself about?
when they would leave snowy solitude at my doorstep,
in the fleece of which language
would I murder the loneliness?

i have a habit
of missing that person sorely
someone, i do not think actually exists

what does one do

when the excuses for complaining
are just so hard to find
then one has to weave one's own pain

the good thing is
that
i am told
i am quite creative

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can one miss something that one does not know exists?

363. ख़याल


आदत है मुझे
उन शख्स को याद करना
जिन्हें मैं जानता भी नहीं था

सोचता हूँ
अक्सर
अगर वो होतें
तो कैसा आलम होता
मैं मैं होता?
या होता कोई और दिलचस्प ग़मगीन दास्ताँ?!

आदत है मुझे
उन शख्स को याद करना
जिन्हें मैंने कभी देखा भी नहीं

सोचता हूँ
अक्सर
अगर वो होतें
तो मैं खुद से कैसी गुफ़्तगू करता?
जब बर्फीली तन्हाई छोड़ जाते वो
तो मैं किस मखमली जुबां के आग़ोश में
क़त्ल करता उसका?!

आदत है मुझे
उन शख्स को याद करना
जो शायद कहीं हैं भी नहीं

क्या करूँ
जब गिले के सबब मुश्किल से भी नहीं मिलते
तो खुद दर्द बुनने बनाने पड़ते हैं

अच्छी बात ये है
की
मैं वैसे काफी creative हूँ!

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Can you miss something that you do not know exists? :)

362. कबूतर


हर सुबह
जब मैं
अपने आँखों की खिड़कियाँ खोलता हूँ
उस चेहरे का मंज़र देखने
तो
पर फड़फड़ाता हुआ
आ बैठता है
सीने में

इतना हल्ला मचाता है
और
ज़हन में रखी चीज़ें
उड़के बिखरने लगती हैं

जान निकली जाती है
हाँ

लाख मनाऊं तो भी नहीं सुनता
लाख भगाऊँ तो भी नहीं उड़ता

इसके रहते
न सांस मिलती है
न नब्ज़ चलती है

इस बदमिजाज कबूतर
का नाम
इश्क़
न जाने किसने रख दिया

उफ़!!
कोई मुझे warn तो करता!?