Thursday, February 02, 2017

363. ख़याल


आदत है मुझे
उन शख्स को याद करना
जिन्हें मैं जानता भी नहीं था

सोचता हूँ
अक्सर
अगर वो होतें
तो कैसा आलम होता
मैं मैं होता?
या होता कोई और दिलचस्प ग़मगीन दास्ताँ?!

आदत है मुझे
उन शख्स को याद करना
जिन्हें मैंने कभी देखा भी नहीं

सोचता हूँ
अक्सर
अगर वो होतें
तो मैं खुद से कैसी गुफ़्तगू करता?
जब बर्फीली तन्हाई छोड़ जाते वो
तो मैं किस मखमली जुबां के आग़ोश में
क़त्ल करता उसका?!

आदत है मुझे
उन शख्स को याद करना
जो शायद कहीं हैं भी नहीं

क्या करूँ
जब गिले के सबब मुश्किल से भी नहीं मिलते
तो खुद दर्द बुनने बनाने पड़ते हैं

अच्छी बात ये है
की
मैं वैसे काफी creative हूँ!

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Can you miss something that you do not know exists? :)

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