ये जिस्म अपना
बातूनी है बहुत
खामोश रहके भी
कहानियाँ सुनाता है
अफ़वाएँ फैलाता है
ऐसा है के
ये कुछ भी कहे
या कुछ न कहे
औरों को सुनाई देता है
कुछ न कुछ
और कुछ न कुछ
समझ आ ही जाता है
उस बच्ची के चेहरे पे मुस्कान
इस लड़के के चेहरे पे मेक-अप
उस औरत के सर को ढकता हिजाब
इस आदमी के माथे पे तिलक
उस बुज़ुर्ग का खुद से बातें करना
उस लड़की के पैर और उस पैर पे उगते बाल?
ये सभी तो
बेख़बर
बेखयाल
चले जा रहे हैं
सड़कों पर
पर लोग हैं कि
हर चीज़ में
कहानियाँ ढूँढते सुनते जाते हैं
तभी कहते हैं
सोच समझके निकला करो
घर से
क्या पता
क्या पढ़ ले बेकाम दुनिया
तुम्हारे लहजे में
बातूनी है बहुत
खामोश रहके भी
कहानियाँ सुनाता है
अफ़वाएँ फैलाता है
ऐसा है के
ये कुछ भी कहे
या कुछ न कहे
औरों को सुनाई देता है
कुछ न कुछ
और कुछ न कुछ
समझ आ ही जाता है
उस बच्ची के चेहरे पे मुस्कान
इस लड़के के चेहरे पे मेक-अप
उस औरत के सर को ढकता हिजाब
इस आदमी के माथे पे तिलक
उस बुज़ुर्ग का खुद से बातें करना
उस लड़की के पैर और उस पैर पे उगते बाल?
ये सभी तो
बेख़बर
बेखयाल
चले जा रहे हैं
सड़कों पर
पर लोग हैं कि
हर चीज़ में
कहानियाँ ढूँढते सुनते जाते हैं
तभी कहते हैं
सोच समझके निकला करो
घर से
क्या पता
क्या पढ़ ले बेकाम दुनिया
तुम्हारे लहजे में
No comments:
Post a Comment