बचपन में
हम गुल्लक में अठन्नी-चवन्नी
जमा किया करते थे
के खर्च करेंगे वो पैसे
जब कोई दिलचस्प सा तजुर्बा मिले हमें
साथ में गोलगप्पे खाएँ
या खरीदें कोई टिंकल-चंपक
जो साथ बैठ-के पढें
काश हम वक़्त को जमा कर पाते ऐसे
आजकल
तुम्हारे बिना दिन-रात गुज़ारता तो हूँ पर
बेफ़िज़ूल लगते हैं सभी
जैसे इन लम्हों का
न कोई वजूद है न वजह
जैसे तुम्हारे बिना वक़्त है
पर ज़िंदगी नहीं
अगर वक़्त को जमा कर पाता तो
हर दिन के हर पहर का हर लम्हा
मैं डालता इक गुल्लक में
और जब दुनिया के दरवाज़े खुले
गुल्लक फोड़के वो सारे जमा लम्हे
लेकर आता तुम्हारे यहाँ
के हम साथ में खर्च करें
ये उम्र
और अपने लिए
थोड़ी यादें
थोड़ी ज़िंदगी
खरीद लें!
हम गुल्लक में अठन्नी-चवन्नी
जमा किया करते थे
के खर्च करेंगे वो पैसे
जब कोई दिलचस्प सा तजुर्बा मिले हमें
साथ में गोलगप्पे खाएँ
या खरीदें कोई टिंकल-चंपक
जो साथ बैठ-के पढें
काश हम वक़्त को जमा कर पाते ऐसे
आजकल
तुम्हारे बिना दिन-रात गुज़ारता तो हूँ पर
बेफ़िज़ूल लगते हैं सभी
जैसे इन लम्हों का
न कोई वजूद है न वजह
जैसे तुम्हारे बिना वक़्त है
पर ज़िंदगी नहीं
अगर वक़्त को जमा कर पाता तो
हर दिन के हर पहर का हर लम्हा
मैं डालता इक गुल्लक में
और जब दुनिया के दरवाज़े खुले
गुल्लक फोड़के वो सारे जमा लम्हे
लेकर आता तुम्हारे यहाँ
के हम साथ में खर्च करें
ये उम्र
और अपने लिए
थोड़ी यादें
थोड़ी ज़िंदगी
खरीद लें!
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