Saturday, June 25, 2016

321. नेता


कभी तो तोल मोलके बोल निकम्मे
तू अपनी पोल खोलके बोल निकम्मे

मर्ज़ी से घयाल हुए जाते हैं कितने
अर्ज़ी दे कायल हुए जाते हैं कितने

शहद मे डुबोके झूठी उम्मीदें फिर से
इनमे ज़हर घोल के बोल निकम्मे

सोचने समझने से ऊब जाते हैं यूँ ही
खाली कटोरों में डूब जाते हैं यूँ ही

बस इन्हीं के लायक हैं हम - तेरे
खोखले गोल गोल के बोल निकम्मे

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inspired by the unsettling political rhetoric world over
where even the well-meaning can only survive by dropping down to the level of the poisonous rest
there was an old adage - yatha raja thata praja (as be the ruler, so be the people); I think the converse is true (as be the people, so be the ruler).

PS: A special shout-out to Chitralekha for reminding me the elusive word of the day - लायक 

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