Wednesday, April 29, 2020

377. बंद रास्ते/ Band Raste

ये हम क्या कर रहे हैं, जान?

हम इक दूसरे को
झूठे मुस्कान
और खोखली गुफ्तगू
परोसते हैं
हर पहर

इक वो वक़्त था
जब तुम्हारे मुस्कान
पढ़ पाती थी मैं
और उनमें
इश्क़ के न जाने कितने नक़्श
मिलते मुझे

मेरी रूह
तुम्हारी आँखों में घुली मौज़ीकी सुनके
रक़्स करती

हम बिना कुछ बोलो
कितनी बातें कर लेते थे, न?

और अब

अब
तुम मेरे सामने बैठे रहते हो
और मैं तुम्हे तलाशती रहती हूँ

नाकाम सी कोशिशें
करते रहते हैं हम
फिर से इश्क़ उगाने की

पर
उगती हैं यहाँ
तो बस इक उदास सी खामोशी
जिसकी न कोई वजह है न इलाज

काश कोई बताता हमें
के रिश्ते ख़त्म नहीं होते
बस बेमतलब हो जाते हैं

और हम बस इन्हें निभाते जाते हैं
जैसे ये कोई बेबुनियाद रवायत हो

न याद है
की ये शुरू किया ही क्यूँ था

न उम्मीद
की ये ख़त्म होगी भी कभी

काश कोई बताता हमें

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