Wednesday, September 07, 2016

334. Bombay और Barrow

इक शहर था
मेरा

याद है?
जहाँ हर रोज़
दिन भर
धूप में
बैठे बैठे
मोम के मंज़र
शाम तक
पिघल जाते थे

निकल  जाते थे
बाक़ायदा

और रात के अँधेरे में
फिर बनते जमते थे
नए वाले
बिलकुल हूबहू

और इक शहर है
तेरा
lovely
जहां महीनों दिन टंगा रहता है
आसमाँ पे

ज़िद्दी धूप में
चमकते रहते हैं मंज़र
बेअदब से

बेक़दर से
जगाये रखते हैं मुझे
महीनों

और फिर अचानक से
ग़ुम हो जाते हैं
अंधेरों में

थके से सोये रहते हैं
महीनों

मेरे यहां के पहर
कितने पाबन्द थे

और तुम्हारे यहां के -
बिलकुल ही बदतमीज़

इन्हें तुम कुछ सिखाते क्यों नहीं?

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