Wednesday, September 07, 2016

340. वक़्त


वक़्त भी
अजीब है

दर्द तो
वक़्त में डूब डूबके
और भी संगीन
हो जाता है

और हँसी है की
वक़्त से
लग लगके
घिस जाती हैं

एक ही हादसे
पे हम
कितने मर्तबा
रोये जाते हैं

पर
किसीको
एक ही मज़ाक पे
दुबारा हँसते हुए
देखा है कभी?

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