Friday, September 23, 2016

341. Font


अब भी
कुछ लिखके
कभी भेज दिया करो न
lovely

मुझे याद है

इक ज़माना था
जब तुम मुझे
खत लिखा करते थे
बहुत

कभी fridge पे
घर से निकलते निकलते
मेरे लिए note छोड़ा करते थे
कुछ याद दिलाने को

प्यार से
ऊँगली से
आँगन की मिट्टी  पे
मेरा नाम लिखा करते थे

तेरी तहरीर से
तेरा चेहरा
तेरा लहजा
छलकता था

हिंदी में लिखते थे
तो अलफ़ाज़ ऐसे लगते थे
जैसे किसी डाली से
बूँदें लटक रहे थे
इत्मेनान से इंतज़ार करते हुए
मेरी आँखों में बरसने को

तेलुगु (తెలుగు) में लिखते थे
तो हर्फ़ ऐसे सूझते थे
जैसे गोल गोल बुलबुलो में
जज़बात फूंकके
बिखेरे हो तुमने
कागज़ पे

अंग्रेजी (english ) में लिखते थे
तो लगता था
जैसे उड़ती हवा के हाथों
रेत में लकीरें बनी हो

कभी जल्दबाज़ी में लिखते थे
तो
ऐसे लगता था
जैसे भागने की कोशिश
कर रहे थे
लफ्ज़
मेरी नज़र से
और इक अरसा
लग जाता
इनका पीछा करते करते
इनका मतलब समझते सुलझाते

कभी
तेरी आंसुओं में
सियाही घुल जाती
और तेरी बातें धुंधलाई सी
पहुँचती थी
मेरे यहां
और तेरी उदासी
कागज़ से उतरके
मेरे कमरे में भर जाती

आजकल तुम
मुझे email और text
बहुत भेजते हो

handwriting
बहुत miss करता हूँ
मैं तेरी

मेरे पर्दो के
सुन्दर font में
तेरी बातें बहु आम लगते हैं
बाकी सभी के
जैसे

तेरी तहरीर में
जादू है
lovely

क्यों
छुपाये रखते हो

अब भी
कुछ अपनी हाथों से लिखके
कभी भेज दिया करो न

shopping list भी चलेगा
:)

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