शायद बेवकूफी खुद की साफ़ आ रही है नज़र
तभी शर्मिंदगी से दुनिया झुका रही है नज़र
उधार में कुछ झूठी सुकूँ मिली थी जिसे
अश्क़ की रवायतों में चुका रही है नज़र
इस कदर उलझी है कही सुनी दास्तानों में
हक़ीक़त जो दिखे तो चोट खा रही है नज़र
पोंछ दो दाग बेमतलब कायदों के अब तो
दिल को मलके देखो जो दिखा रही है नज़र
तभी शर्मिंदगी से दुनिया झुका रही है नज़र
उधार में कुछ झूठी सुकूँ मिली थी जिसे
अश्क़ की रवायतों में चुका रही है नज़र
इस कदर उलझी है कही सुनी दास्तानों में
हक़ीक़त जो दिखे तो चोट खा रही है नज़र
पोंछ दो दाग बेमतलब कायदों के अब तो
दिल को मलके देखो जो दिखा रही है नज़र
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