Tuesday, November 22, 2016

353. आज माना ऐ ज़माना

आज माना ऐ ज़माना आज़माने की कमी है
सब ज़माने को यार अपना बस बुलाने की कमी है
दिल मिलान है सभी को बस बहाने की कमी है
है बहाना भी बस निगाहें अब उठाने की कमी है

दोस्ताना है इधर भी दोस्ताना है उधर भी
दोस्ताना है मगर क्यों छुपाते खुद हमीं हैं
जज़्बा तो है हर इक दिल में बस जताने की कमी है
आज माना ऐ ज़माना आज़माने की कमी है

रस्ता रस्ता है तरसता प्यासा प्यासा हर इक मंज़र
प्यासा प्यासा आज अंबर प्यासी प्यासी ये ज़मीं है
मैकदा दिल है साक़ी भी है बस पैमाने की कमी है
आज माना ऐ ज़माना आज़माने की कमी है

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Sometime in 2006
I actually have a note under saying - "our prejudices gift us our foes & our tolerance, our friends."
Preachy much!? As always... :D

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