Wednesday, January 27, 2016

288. मसीहा

आज देखके आया हूँ उसे

वो मेरा मसीहा
जिसकी आवाज़ सुन-सुनके
ज़िंदगी बनाई है
जिसकी आवाज़ चुन-चुनके
ज़िंदगी बिताई है

बड़ा मासूम सा
है वो
बड़ा मज़ाकिया है

वो खुद ही पे
हँसने की हुनर उसकी

जब वो लफ़्ज़ों में
दुनिया दिखाता है
तो ऐसे लगता है जैसे
जान फूँक दी
बेजान से नज़र में

वो बात बात पे
ताज्जुब होना
कैसे उसकी आमद से
पिघलके बरस जाते हैं सभी
छलकके बिखर जाते हैं

वो शुक्रिया अदा करना
क्या खुदा भी कभी
बंदे का शुक्र गुज़ार हो सकता है
भला

आज देखके आया हूँ उसे
जैसे और ज़िंदा हो गया हूँ
जैसे मरके जन्नत नसीब हो गयी हो मुझे

जब कहता हूँ लोगों से
तो पूछते हैं
कोई autograph लिया के नहीं

सोचता हूँ
अगर रोशन रूह को दिखा पाता अपना
तो दिखती autograph उनकी

पर क्या
किसीने भला
रूह देखी है कभी

---
Gulzar | 24th January 2016 | Jaipur Lit Fest

Monday, January 25, 2016

287. Love fugitives in plain sight

don't worry
babu

we will not be caught

i
love you
in a beautiful language
foreign to this world

you
love me
in an intense color
unseen and unseeable
by them

so don't you worry
that we will be caught
by the world

by the ones
who threaten us with death
just because we threaten them with life

they
can't see
the footprints
our voices leave behind

let us just stay hidden
in a shared kiss

let us just
love

Friday, January 22, 2016

286. कचरा

श्श्श्
ग़ौर से सुनो

कैसे
गुर्र्रा रहा है
ये समंदर

ऐसे ही शोर करते
करवटें बदलता रहता है
हर पहर

मैंने सुना है
इसका पेट खराब है
इक सदी से

food poisoning ही होगा

ये शहर
न जाने कब से
इस समंदर को
क्या क्या खिला रहा है

plastic की थैलियाँ
घर में बचाकुचा खाना
कुछ भी

कुछ
भी

ये लहरें न-न करती रहती हैं
पर हम -
हम ठहरे
ज़बरदस्ती खाना ठूसने वाले
न तो हम सुनते ही नहीं

अब indigestion नहीं होगा
तो क्या होगा

अब रह-रहके
शहर के किनारों पे
उल्टियाँ करता रहता है
समंदर

शहरवालों -
अपनी ख़ातिरदारी
ज़रा
बस करो

वरना
इक दिन
इस बेरहम मेहमाननवाज़ी से
ऊबके
जान दे देगा

मैं बता रहा हूँ
हाँ 

285. इशक़नामा

ये कैसी मुहब्बत है खुदा
यूँ ज़िंदगी सिखा गयी है हमें
साँस लेना मुश्किल है, बड़ा
पर ज़िंदगी सिखा गयी है हमें

--

हसीं अजनबी ज़बाँ बोल पड़े हैं
न तुम समझ पाए न हम
हर लम्हा सदियाँ दौड़ चले हैं
न तुम संभल पाए न हम

हर आह इबादत सी लगे
हाँ, बंदगी सिखा गयी है हमें
ये कैसी मुहब्बत है खुदा
यूँ ज़िंदगी सिखा गयी है हमें

--

दुनियावाले ज़हर जो उगलते हैं
ये क्यूँ - जान पाए न कोई
हम अब तुम्हें पहनके निकलते हैं
हमें पहचान पाए न कोई

अजीब है - बेशर्म सी दुनिया
शर्मिंदगी सिखा गयी है हमें
साँस लेना मुश्किल है, बड़ा
पर ज़िंदगी सिखा गयी है हमें

Monday, January 18, 2016

284. महफ़िल

वो
उस तरफ
बैठे रहते हैं
सेठ-सेठानियों की तरह

मैं उन्हें
अपने तजुर्बे
सुनाते रहता हूँ

और
वो
तोल-तोलके
इन तजुरबों को
इनके बदले
मुझे देते हैं
कुछ रोशन मुस्कान

कभी किस्मत
अच्छी निकली
तो
दो चार हँसी के लंबे ठहाके भी
मिल जाते हैं

पर
काफ़ी दिनों से
उनके यहाँ से
मैं
खाली हाथ ही लौटा हूँ

क्या करूँ
आज कल
ज़िंदगी में
कुछ दिलचस्प
होती भी तो नहीं

Sunday, January 17, 2016

283. जोधपुर


महरांगढ़ किले से
नीचे देखे जो कोई
तो
एक फैली हुई
बड़ी बुज़ुर्ग सी
बस्ती
दिखती है
हज़ारों किस्म के नीले रंग पहने

ऐसे लगता है
जैसे
सदियों से
किसी दर्ज़ी ने
फ़ितरत बदलते आसमान के
हर लिबास से टुकड़े चुन चुनके
धूप के धागे से
इस नीले मंज़र की रज़ाई
बनाई हो

शायद
सर्दियों में
जब ठंड पड़ती है
रात में,
ये बस्ती
इस मंज़र की नीली रज़ाई
ओढ़के
सो जाती है

282. उदयपुर

शाम को देखो
तो
पिछोला झील के किनारे
बत्तियों से लिपटे
सारी महले ऐसे लगती हैं
जैसे
रेशम की चमकीली घूँघट
पहंके
बहुत सी रानियाँ
झील के किनारों पे
बैठी है
अपने ज़री के लहँगे
बिछाए

और पानियों पे
city palace की लंबी उजली परछाई
ऐसे नज़र आती है
जैसे
एक नृत्यांगना
अपने सर पे
बहुत से मटके सजाके
रानियों के लिए
भवाई नाच रही हो
बड़ी नज़ाकत से

हर शाम
ये सभा
सजती है
यूँ ही

तुम कभी यहाँ आओ
तो ज़रूर देखना 

281. बर्डवाचिंग

एक मिनिट रुको,
बाबू

देखो
कैसे उड़-उड़के
आ बैठा है
मेरे तसव्वुर के दरीचे पे
ये अनोखे ख़याल का रंगीन परिंदा

देख
कैसे बैठा है
बेताब सा

एक मिनिट रूको

मुझे
जल्दी से
click करने दो
अल्फाज़ों की इक तस्वीर
इसकी

एक नज़्म लिखने दो

वरना
किसी नये लम्हे
की आहट से
चौंकके
ये ख़याल
उड़ जाएगा

Wednesday, January 13, 2016

280. चाँद बावरी

सहमी सी
निकलती है
हर रात
जब हर कोई सो जाता है

पर झील में
खुद की परछाई देखती है
तो
इतराती है

जानती है
वो कितनी खूबसूरत है

और हाँ,
काफ़ी fashionable
भी तो है

रोज़ style
बदलती रहती है

कभी बादलों की stole
पहनके निकलती है

कभी अपना रोशन चेहरा
काले scarf में
आधा छुपाके
आसमान के ramp पे
catwalk करती है
अकेले में

हर शब
यूँ ही
हिम्मत जुटाके
छुप छुपके
निकलती है
बावरी

डरती है
कहीं
कोई उसे style मारते
देख ना ले

लोग कहते हैं
रातों में
लड़कियों का अकेला 
निकलना ठीक नहीं

---
Bravely reclaiming public spaces. 
Sky is as much yours as of others'. 
Night is as much yours as others'.

279. Moon

Continuing with the moon obsession
---

it
crawls
slowly
tentatively
each night

the moon spider

it
treads
the same path
across my sky ceiling
each night

i watch
in anticipation

one of these nights
i am sure
it will
suddenly gobble up -
one of the stars
caught in its web
of moon-light gossamer 

278. Jigsaw

Boy did not sleep well
last night

I had peeled
all the sunny pieces of the day
off
last evening

leaving behind
the empty dark board

all the pieces
but
for the stubborn
radiant piece of the moon
which refused to relent
and come unstuck
from the sky-board

and all through the night
the moon-piece
smugly
kept
peeping through our bedroom window

and you know how
Boy is such a light sleeper

no wonder
he did not sleep well
last night

277. ज़िद्दी

धूप की किरणों के धागे
काट काटके
मैं शाम से
रोशनी की सारी पतंगे
उड़ा रहा हूँ
जो आसमान में भरे थे

अब सारा आसमान
खाली है
काला है

बस बची है
तो इक चाँद की ज़िद्दी पतंग

क्या करूँ
ये चाँदनी की डोर
मुझसे कटती ही नहीं

276. गुरूर

यूँ ही
बुलंद नहीं हैं
हौसले मेरे
हसरतें मेरी

बड़ी शिद्दत से
पाले हैं इन्हे

वक़्त के कितने
टुकड़े खिलाए हैं

होश गँवाकर कितने दिन
नींद गिरवी रखकर कितनी रातें
जमा किए हैं
इनके लिए

तुम्हे
लगते होंगे फ़िज़ूल
ये

पर ज़िंदगी चुकाके
संभाले हैं इन्हे

यूँ ही
बुलंद नहीं हैं
हसरतें मेरी
हौसले मेरे

Thursday, January 07, 2016

275. Rana


I marvel
each time I think of him
and they ask me why

They should see

how
he reaches out
to life
and does not
wait for it to happen

how
he finds
art on dusty windshields
mirth in the company of strangers
music in crowded moments

how
he finds
life in places
it did not know
it could be

how
he coaxes
butterflies
out of unsuspecting caterpillars
to the pleasant surprise
of the world

Ah, but I -
I love the times
he coaxes
caterpillars
out of unhappy butterflies;
and applauds their defiant beauty
and teaches them pride

how
he sends
thoughts draped in radiant words
across miles
to light up,
evenings;
and
to lighten up,
moods

how
he mixes
merriment and maturity

how
he makes
sense seem so eloquent
empathy seem so effortless
immersion seem so enticing

They should see
and they will know
why

I marvel
each time I think of him

and I am not the only one
--

My unassuming friend. 
Thank you.

Tuesday, January 05, 2016

274. Inebriation

hula-hoops
strange time loops
mascara goops
some drinks and ... oops!

--
lest sanity be suspected

273. दुआ

आसमाँ वाले
आसमाँ वाले

आज आजा
आज़मा जा
आसमाँ से
आज आजा

आसमानों
से जो गूँजे
दास्ताँ हैं
सारे तेरे

कैसे पहुँचें
इतने ऊँचे
आसमाँ हैं
सारे तेरे

जान जाए
जो मैं सुन लूँ
आहट तेरी
जान जाए

जान जाए
जो तू देखे
हालत मेरी
जान जाए

तेरी रहमत में
वो पुरानी
इश्क़ फिर से
देख लूँ मैं

तेरी कुद्रत में
इक नूरानी
इश्क़ फिर से
सीख लूँ मैं

सारी राहों में
ज़र्दी भर दे
तेरे नूर के
तेरे नूर के

सारी रूहों पे
पर्दे कर दे
तेरे नूर के
तेरे नूर के

आसमाँ से
आस सुन ले
आह भर लें
आँख भर दे

आज आजा
आज़मा जा
आसमान से
आज आजा

आसमाँ वाले
आसमाँ वाले