Wednesday, January 13, 2016

276. गुरूर

यूँ ही
बुलंद नहीं हैं
हौसले मेरे
हसरतें मेरी

बड़ी शिद्दत से
पाले हैं इन्हे

वक़्त के कितने
टुकड़े खिलाए हैं

होश गँवाकर कितने दिन
नींद गिरवी रखकर कितनी रातें
जमा किए हैं
इनके लिए

तुम्हे
लगते होंगे फ़िज़ूल
ये

पर ज़िंदगी चुकाके
संभाले हैं इन्हे

यूँ ही
बुलंद नहीं हैं
हसरतें मेरी
हौसले मेरे

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