वो
उस तरफ
बैठे रहते हैं
सेठ-सेठानियों की तरह
मैं उन्हें
अपने तजुर्बे
सुनाते रहता हूँ
और
वो
तोल-तोलके
इन तजुरबों को
इनके बदले
मुझे देते हैं
कुछ रोशन मुस्कान
कभी किस्मत
अच्छी निकली
तो
दो चार हँसी के लंबे ठहाके भी
मिल जाते हैं
पर
काफ़ी दिनों से
उनके यहाँ से
मैं
खाली हाथ ही लौटा हूँ
क्या करूँ
आज कल
ज़िंदगी में
कुछ दिलचस्प
होती भी तो नहीं
उस तरफ
बैठे रहते हैं
सेठ-सेठानियों की तरह
मैं उन्हें
अपने तजुर्बे
सुनाते रहता हूँ
और
वो
तोल-तोलके
इन तजुरबों को
इनके बदले
मुझे देते हैं
कुछ रोशन मुस्कान
कभी किस्मत
अच्छी निकली
तो
दो चार हँसी के लंबे ठहाके भी
मिल जाते हैं
पर
काफ़ी दिनों से
उनके यहाँ से
मैं
खाली हाथ ही लौटा हूँ
क्या करूँ
आज कल
ज़िंदगी में
कुछ दिलचस्प
होती भी तो नहीं
No comments:
Post a Comment