शाम को देखो
तो
पिछोला झील के किनारे
बत्तियों से लिपटे
सारी महले ऐसे लगती हैं
जैसे
रेशम की चमकीली घूँघट
पहंके
बहुत सी रानियाँ
झील के किनारों पे
बैठी है
अपने ज़री के लहँगे
बिछाए
और पानियों पे
city palace की लंबी उजली परछाई
ऐसे नज़र आती है
जैसे
एक नृत्यांगना
अपने सर पे
बहुत से मटके सजाके
रानियों के लिए
भवाई नाच रही हो
बड़ी नज़ाकत से
हर शाम
ये सभा
सजती है
यूँ ही
तुम कभी यहाँ आओ
तो ज़रूर देखना
तो
पिछोला झील के किनारे
बत्तियों से लिपटे
सारी महले ऐसे लगती हैं
जैसे
रेशम की चमकीली घूँघट
पहंके
बहुत सी रानियाँ
झील के किनारों पे
बैठी है
अपने ज़री के लहँगे
बिछाए
और पानियों पे
city palace की लंबी उजली परछाई
ऐसे नज़र आती है
जैसे
एक नृत्यांगना
अपने सर पे
बहुत से मटके सजाके
रानियों के लिए
भवाई नाच रही हो
बड़ी नज़ाकत से
हर शाम
ये सभा
सजती है
यूँ ही
तुम कभी यहाँ आओ
तो ज़रूर देखना
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