Friday, January 22, 2016

286. कचरा

श्श्श्
ग़ौर से सुनो

कैसे
गुर्र्रा रहा है
ये समंदर

ऐसे ही शोर करते
करवटें बदलता रहता है
हर पहर

मैंने सुना है
इसका पेट खराब है
इक सदी से

food poisoning ही होगा

ये शहर
न जाने कब से
इस समंदर को
क्या क्या खिला रहा है

plastic की थैलियाँ
घर में बचाकुचा खाना
कुछ भी

कुछ
भी

ये लहरें न-न करती रहती हैं
पर हम -
हम ठहरे
ज़बरदस्ती खाना ठूसने वाले
न तो हम सुनते ही नहीं

अब indigestion नहीं होगा
तो क्या होगा

अब रह-रहके
शहर के किनारों पे
उल्टियाँ करता रहता है
समंदर

शहरवालों -
अपनी ख़ातिरदारी
ज़रा
बस करो

वरना
इक दिन
इस बेरहम मेहमाननवाज़ी से
ऊबके
जान दे देगा

मैं बता रहा हूँ
हाँ 

No comments: