Wednesday, January 13, 2016

277. ज़िद्दी

धूप की किरणों के धागे
काट काटके
मैं शाम से
रोशनी की सारी पतंगे
उड़ा रहा हूँ
जो आसमान में भरे थे

अब सारा आसमान
खाली है
काला है

बस बची है
तो इक चाँद की ज़िद्दी पतंग

क्या करूँ
ये चाँदनी की डोर
मुझसे कटती ही नहीं

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